अपनी मधुर संगीत से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करने वाले महान संगीतकार आरडी बर्मन को आज बॉलीवुड उनके 77वें जन्मदिन पर याद कर रहा है। पंचम दा के नाम से मशहूर राहुल देव बर्मन का जन्म आज ही के दिन यानि 27 जून 1939 को कोलकत्ता में हुआ था उनके पिता सचिन देव बर्मन की गिनती बॉलीवुड के महान संगीतकारों में होती है राहुल ने अपनी पिता के परंपरा को आगे बढ़ाया और संगीत को ही अपनी दुनिया बनाई। राहुल देव बर्मन ने अपने संगीत से भारतीय सिनेमा को एक नई पहचान दी। छोटी सी उम्र में ही उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री को सैकड़ों गाने दिए।
जानिए कैसे बने राहुल देव बर्मन से पंचम दा ?
जब इनका जन्म हुआ, तब अभिनेता अशोक कुमारने देखा कि नवजात राहुल देव बर्मन बार-बार पांचवा स्वर "पा" दुहरा रहे हैं, तभी उन्होंने इनका नाम "पंचम" रख दिया। तब से आरडी बर्मन 'पंचमदा' के नाम से मशहूर हो गए।
छोटी सी उम्र में बनाई पहली धुन
नौ वर्ष की छोटी-सी उम्र में पंचम दा ने अपनी पहली धुन 'ए मेरी टोपी पलट के आ' बनाई और बाद में उनके पिता सचिन देव बर्मन ने उसका इस्तेमाल 1956 में प्रदर्शितत फिल्म 'फंटूश' में किया। इसके अलावा उनकी बनाई धुन 'सर जो तेरा चकराए' भी गुरुदत्त की फिल्म 'प्यासा' के लिए इस्तेमाल की गई। फिल्म का यह गाना आज भी लोगों के जुबान पर सुना जा सकता है।
कम उम्र में ही उन्होंने संगीत की कला सीख ली थी। धीरे-धीरे जब आरडी बर्मन बड़े होने लगे तब वह एक बड़े और प्रख्यात संगीतकार बन गए। उनके द्वारा बनाए गए संगीत उनके पिता एस डी बर्मन के संगीत की शैली से काफी अलग थे। आर डी वर्मन हिन्दुस्तानी के साथ पाश्चात्य संगीत का भी मिश्रण करते थे, जिससे भारतीय संगीत को एक अलग पहचान मिलती थी। लेकिन उनके पिता सचिन देव बर्मन को पाश्चात्य संगीत का मिश्रण रास नहीं आता था।
करियर की शुरुआत
आर डी बर्मन ने अपने करियर की शुरुआत बतौर एक सहायक के रुप में की। शुरुआती दौर में वह अपने पिता के संगीत सहायक थे। उन्होंने अपने फिल्मी करियर में हिन्दी के अलावा बंगला, तमिल, तेलगु, और मराठी में भी काम किया है। इसके अलावा उन्होंने अपने आवाज का जादू भी बिखेरा। शोले फिल्म के ‘महबूबा-महबूबा’ गाने को कौन भूल सकता है। इस तरह से उन्होंने अपने पिता के साथ मिलकर कई सफल संगीत दिए।
आर डी बर्मन ने अपने करियर की शुरुआत बतौर एक सहायक के रुप में की। शुरुआती दौर में वह अपने पिता के संगीत सहायक थे। उन्होंने अपने फिल्मी करियर में हिन्दी के अलावा बंगला, तमिल, तेलगु, और मराठी में भी काम किया है। इसके अलावा उन्होंने अपने आवाज का जादू भी बिखेरा। शोले फिल्म के ‘महबूबा-महबूबा’ गाने को कौन भूल सकता है। इस तरह से उन्होंने अपने पिता के साथ मिलकर कई सफल संगीत दिए।
महमूद ने दिया पहला अवसर
बतौर संगीतकार उन्होंने अपने सिने करियर की शुरुआत वर्ष 1961 में महमूद की निर्मित फिल्म 'छोटे नवाब' से की लेकिन इस फिल्म के जरिए वे कुछ खास पहचान नहीं बना पाए। फिल्म 'छोटे नवाब' में आरडी बर्मन के काम करने का किस्सा काफी दिलचस्प है।
हुआ यूं कि फिल्म छोटे नवाब के लिए महमूद बतौर संगीतकार एसडी बर्मन को लेना चाहते थे लेकिन उनकी एसडी बर्मन से कोई खास जान-पहचान नहीं थी। आरडी बर्मन चूंकि एसडी बर्मन के पुत्र थे, अत: महमूद ने निश्चय किया कि वे इस बारे में आरडी बर्मन से बात करेंगे।
एक दिन महमूद आरडी बर्मन को अपनी कार में बैठाकर घुमाने निकल गए। रास्ते में सफर अच्छा बीते इसलिए आरडी बर्मन अपना माउथ ऑरगन निकालकर बजाने लगे। उनके धुन बनाने के अंदाज से महमूद इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने फिल्म में एसडी बर्मन को काम देने का इरादा त्याग दिया और अपनी फिल्म 'छोटे नवाब' में काम करने का मौका दे दिया।
सत्तर के दशक के शुरुआत में आर डी बर्मन भारतीय फिल्म जगत के एक लोकप्रिय संगीतकार बन गए। उन्होंने लता मंगेशकर, आशा भोसले, मोहम्मद रफी और किशोर कुमार जैसे बड़े फनकारों से अपने फिल्मों में गाने गवाए। 1970 में उन्होंने छह फिल्मों में अपनी संगीत दी जिसमें कटी पतंग काफी सफल रही। यहां से आर डी बर्मन संगीतकार के रुप में काफी सफल हुए। बाद में यादों की बारात, हीरा पन्ना, अनामिका आदि जैसे बड़े फिल्मों में उन्होंने संगीत दिया। आर डी वर्मन की बतौर संगीतकार अंतिम फिल्म 1942 लव स्टोरी रही। वर्ष 1994 में इस बड़े संगीतकार ने दुनिया को अलविदा कह दिया।
पंचम दा ने अपने जीवन में भारतीय सिनेमा को हर तरह का संगीत दिया। आज भी उनके संगीत को पसंद किया जाता है और बखूबी इस्तमाल भी किया जाता है।
बतौर संगीतकार उन्होंने अपने सिने करियर की शुरुआत वर्ष 1961 में महमूद की निर्मित फिल्म 'छोटे नवाब' से की लेकिन इस फिल्म के जरिए वे कुछ खास पहचान नहीं बना पाए। फिल्म 'छोटे नवाब' में आरडी बर्मन के काम करने का किस्सा काफी दिलचस्प है।
हुआ यूं कि फिल्म छोटे नवाब के लिए महमूद बतौर संगीतकार एसडी बर्मन को लेना चाहते थे लेकिन उनकी एसडी बर्मन से कोई खास जान-पहचान नहीं थी। आरडी बर्मन चूंकि एसडी बर्मन के पुत्र थे, अत: महमूद ने निश्चय किया कि वे इस बारे में आरडी बर्मन से बात करेंगे।
एक दिन महमूद आरडी बर्मन को अपनी कार में बैठाकर घुमाने निकल गए। रास्ते में सफर अच्छा बीते इसलिए आरडी बर्मन अपना माउथ ऑरगन निकालकर बजाने लगे। उनके धुन बनाने के अंदाज से महमूद इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने फिल्म में एसडी बर्मन को काम देने का इरादा त्याग दिया और अपनी फिल्म 'छोटे नवाब' में काम करने का मौका दे दिया।
सत्तर के दशक के शुरुआत में आर डी बर्मन भारतीय फिल्म जगत के एक लोकप्रिय संगीतकार बन गए। उन्होंने लता मंगेशकर, आशा भोसले, मोहम्मद रफी और किशोर कुमार जैसे बड़े फनकारों से अपने फिल्मों में गाने गवाए। 1970 में उन्होंने छह फिल्मों में अपनी संगीत दी जिसमें कटी पतंग काफी सफल रही। यहां से आर डी बर्मन संगीतकार के रुप में काफी सफल हुए। बाद में यादों की बारात, हीरा पन्ना, अनामिका आदि जैसे बड़े फिल्मों में उन्होंने संगीत दिया। आर डी वर्मन की बतौर संगीतकार अंतिम फिल्म 1942 लव स्टोरी रही। वर्ष 1994 में इस बड़े संगीतकार ने दुनिया को अलविदा कह दिया।
पंचम दा ने अपने जीवन में भारतीय सिनेमा को हर तरह का संगीत दिया। आज भी उनके संगीत को पसंद किया जाता है और बखूबी इस्तमाल भी किया जाता है।
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